Army Family Pension – सैन्यकर्मी की पत्नी को विशेष पारिवारिक पेंशन देने में केंद्र सरकार को लगभग 45 साल का लंबा समय लग गया। यह मामला एक ऐसे सैनिक का था, जिसकी शहादत के बाद उसकी पत्नी को पेंशन का अधिकार लंबे समय तक नहीं मिला। देश की सेवा करने वाले सैनिकों के परिवारों को इस तरह का न्याय पाने में इतने साल लगना एक चिंताजनक स्थिति है। दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मामले में फटकार लगाते हुए कहा कि शहीदों के परिवारों को उनके अधिकारों के लिए दशकों तक इंतजार नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब कोई सैनिक देश की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान देता है, तो उसके परिवार को समय पर सहायता और सम्मान मिलना सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।

दिल्ली हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक शहीद की पत्नी को अपने वैधानिक अधिकार के लिए 45 साल तक संघर्ष करना पड़ा। न्यायमूर्ति ने टिप्पणी की कि सरकारी तंत्र की लापरवाही और प्रक्रियात्मक जटिलताएं अक्सर उन परिवारों को और आघात पहुंचाती हैं, जिन्होंने पहले ही अपना प्रियजन खो दिया है। अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया कि भविष्य में ऐसे मामलों में देरी नहीं होनी चाहिए और सभी संबंधित विभागों को मिलकर एक त्वरित प्रक्रिया तैयार करनी चाहिए, जिससे पेंशन जैसे मामलों का समाधान जल्द हो सके।
सरकार की दलील और कोर्ट का जवाब
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि इस मामले में रिकॉर्ड्स और अनुमोदन प्रक्रियाओं में विलंब के कारण पेंशन में देर हुई। लेकिन कोर्ट ने यह दलील खारिज करते हुए कहा कि ‘रिकॉर्ड की कमी’ या ‘प्रशासनिक भूल’ जैसी बातें शहीद परिवारों के प्रति असंवेदनशीलता दर्शाती हैं। अदालत ने कहा कि जब सैनिक राष्ट्र की रक्षा में जान की बाजी लगा सकता है, तो सरकार को भी उनके परिवार के लिए समर्पित होकर काम करना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार को ऐसे मामलों में ‘मानवीय दृष्टिकोण’ अपनाना चाहिए, न कि केवल कागजी प्रक्रिया के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।
विशेष पारिवारिक पेंशन का महत्व
विशेष पारिवारिक पेंशन केवल आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि एक सम्मान और राष्ट्र की कृतज्ञता का प्रतीक होती है। यह उन परिवारों के प्रति राष्ट्र का आभार है जिन्होंने अपने प्रियजनों को देश की सेवा में खो दिया। दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल इस महिला के लिए न्याय का प्रतीक है, बल्कि आने वाले समय में अन्य शहीद परिवारों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है। यह मामला यह दर्शाता है कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार की कितनी आवश्यकता है ताकि किसी भी सैनिक परिवार को अपने अधिकारों के लिए वर्षों तक संघर्ष न करना पड़े।
भविष्य के लिए सबक
यह निर्णय केंद्र सरकार और संबंधित विभागों के लिए एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। इस घटना से यह स्पष्ट है कि सरकार को अपनी पेंशन प्रणाली में पारदर्शिता और समयबद्धता लानी होगी। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि एक ‘फास्ट-ट्रैक सैन्य पेंशन सेल’ का गठन किया जाए, जो ऐसे मामलों को प्राथमिकता से निपटाए। इससे न केवल सैनिक परिवारों में विश्वास बढ़ेगा, बल्कि यह कदम शासन की संवेदनशीलता को भी दर्शाएगा। यह फैसला उन सभी परिवारों के लिए उम्मीद की किरण है जो वर्षों से अपने अधिकार के लिए लड़ रहे हैं।
